चुनाव आयोग अब मतदाता सूची की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए मतदाता पहचान पत्र को आधार से लिंक करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इस मुद्दे पर 18 मार्च को एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है जिसमें यूआईडीएआई के वरिष्ठ अधिकारी, गृह सचिव और विधि सचिव भी शामिल होंगे। माना जा रहा है कि इस बैठक में मतदाता सूची को आधार डाटाबेस से जोड़ने को लेकर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है।

कानूनी अड़चनों को खत्म करने की कवायद
चुनाव आयोग ने पहले भी मतदाता सूची को आधार से जोड़ने की पहल की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट की आपत्तियों के कारण यह प्रक्रिया ठप हो गई थी। अब सरकार चुनाव कानून में संशोधन कर इसका रास्ता साफ कर सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि आधार का उपयोग सिर्फ कल्याणकारी योजनाओं के लिए ही किया जाना चाहिए, जिससे इस विषय पर विवाद बढ़ सकता है।
66 करोड़ मतदाताओं ने पहचान पत्र आधार से जोड़ा
चुनाव आयोग ने पहले चरण में 66 करोड़ मतदाताओं के पहचान पत्र को आधार से जोड़ा था। हालांकि, यह प्रक्रिया पूरी तरह अनिवार्य नहीं थी। वैज्ञानिक और सामाजिक पहलुओं को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वैच्छिक बनाने का आदेश दिया था। फिर भी, सरकार इसे अनिवार्य करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है, जिससे मतदाता सूची में किसी भी तरह की गड़बड़ी को रोका जा सके।
विपक्ष का आरोप और चुनावी रणनीति
विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस कदम को चुनावी रणनीति बताया है। उनका कहना है कि मतदाता सूची को आधार से जोड़ने के नाम पर सरकार मनमाने तरीके से कुछ नाम हटा सकती है। राहुल गांधी ने इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए भाजपा पर मतदाता सूची में हेरफेर करने का आरोप लगाया है।
निष्कर्ष: मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने का यह प्रस्ताव चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की एक महत्वपूर्ण पहल हो सकती है, लेकिन इसके कानूनी और राजनीतिक पहलू भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पक्षों को संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी।